राजस्थान में 2009-2014 के मुकाबले 2014-2024 में औसतन प्रति वर्ष दुगनी रेल लाइने डाली गई

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लोकसभा सत्र के दौरान माननीय सांसद श्री हरीश चंद्र मीना द्वारा राजस्थान में रेल परियोजनाओं के निर्धारित समय सीमा में पूर्ण करने के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों पर किए गए प्रश्न के सम्बंध में माननीय रेल, सूचना एवं प्रसारण तथा इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री श्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि राजस्थान में वर्ष 2009-2014 के बीच 798 किलोमीटर नई रेलवे ट्रैक कमीशन की गई जो कि औसतन 159.6 किलोमीटर प्रतिवर्ष थी जबकि वर्ष 2014-2024 के मध्य 3,742 किलोमीटर नई रेलवे ट्रैक कमीशन की गई जो कि औसतन 374.2 किलोमीटर प्रतिवर्ष ( दोगुने से ज्यादा) है।

महत्वपूर्ण परियोजनाएं जो स्वीकृत हैं और पूर्ण/ आंशिक रूप से राजस्थान राज्य में पड़ती है , उनका विवरण निम्नानुसार है:

1. तिरंगा हिल- अंबाजी -आबू रोड नई लाइन 116.65 किलोमीटर

2. नीमच- बड़ी सादड़ी नई लाइन 46.28 किलोमीटर

3. रींगस- खाटू श्याम जी नई लाइन 17.49 किलोमीटर

4. पुष्कर- मेड़ता (कात्यासनी) नई लाइन 51.346 किलोमीटर

5. रास – मेड़ता सिटी नई लाइन मेड़ता रोड बायपास सहित 55.90 किलोमीटर

6. देवगढ़ -नाथद्वारा गेज परिवर्तन 82.54 किलोमीटर

7. अजमेर- चंदेरिया दोहरीकरण 178.20 किलोमीटर

8. लुणी -समदड़ी -भीलड़ी दोहरीकरण 271.97 किलोमीटर

9. चूरु -रतनगढ़ दोहरीकरण 42.81 किलोमीटर

10. चूरु – सादुलपुर दोहरीकरण 57.82 किलोमीटर

11. जयपुर- सवाई माधोपुर दोहरीकरण 131.27 किलोमीटर

रेल परियोजनाओं के प्रभावी और त्वरित क्रियान्वयन के लिए सरकार द्वारा उठाए गए विभिन्न कदमों में शामिल हैं (i) निधियों के आवंटन में पर्याप्त वृद्धि (ii) फील्ड स्तर पर शक्तियां प्रदान करना (iii) विभिन्न स्तरों पर परियोजना की प्रगति की बारीकी से निगरानी(iv) भूमि अधिग्रहण, वानिकी और वन्यजीव मंजूरी में तेजी लाने और परियोजनाओं से संबंधित अन्य मुद्दों को हल करने के लिए राज्य सरकारों और संबंधित अधिकारियों के साथ नियमित अनुवर्ती कार्रवाई

किसी भी रेलवे परियोजना का पूरा होना विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है जैसे राज्य सरकार द्वारा शीघ्र भूमि अधिग्रहण, वन विभाग के अधिकारियों द्वारा फॉरेस्ट क्लियरेंस, लागत साझाकरण परियोजनाओं में राज्य सरकार द्वारा लागत हिस्सेदारी का भुगतान, परियोजनाओं की प्राथमिकता, बाधा कारी उपयोगी कारकों का स्थानांतरण, विभिन्न प्राधिकरणों से वैधानिक मंजूरी, क्षेत्र की भूवैज्ञानिक और टोपोग्राफिकल स्थितियां, परियोजना स्थल के क्षेत्र में कानून और व्यवस्था की स्थिति, जलवायु स्थिति के कारण विशेष परियोजना स्थल पर वर्ष में कार्य करने लायक महीनों की संख्या, आदि।

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